Time Is Money
Time Is Money
- समय को निवेश करो — सीखने में, प्रार्थना में, परिवार में, सेवा में —
कैसा हुं मैं?
अभी शाम के 5:10 समय है। मैं कोटालपोखर स्टेशन में अकेला बैठा हुआ हूं। मैं अपने दोस्त के घर में लगभग 27-28 दिन रहा। मैं उनके घर में अपने मर्जी के अनुसार रहता था, किसी भी चीज का कोई रोक-टोक नहीं।
वह बात अलग है कि मुझे उनके घर में दुष्ट आत्माएं परेशान करती थी। लेकिन मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं कि परमेश्वर ने मुझे इतना अच्छा दोस्त दिया है। जहां तक मुझे याद है, मेरे दोस्त ने मुझे सिर्फ दिया है, बदले में कुछ नहीं लिया है। हां मैं ये जरूर मानता हूं कि मेरे परमेश्वर ने उन लोगों को वह मुसीबत से बचाया है जो (दुष्ट) उनके गांव में कार्य कर रही है। और मैं यह मानता हूं कि परमेश्वर ने उन लोगों को मेरे मदद के लिए ठहराया है। मैं तो यही मानता आया हूं।
लेकिन इस बार मेरा दोस्त पहले जैसा नहीं लग रहा था, जैसे किसी उलझन में पड़ा हो।
जब मैं वहां लगभग 20 दिन तक रहा, तो मेरे दोस्त ने मुझे कहा, मेरे कहने पर। यही कि " तुमको तो पता है ना कभी इस घर का जिम्मेदारी मेरा नहीं है। मेरे माता-पिता पूछ रहे थे कि ये अपने घर जाने की सोच रहा है कि नहीं?"
जब उसने मुझे बताया कि उसके माता-पिता मेरे जाने के बारे में पूछ रहे हैं। तो मुझे अच्छा नहीं लगा, और मुझे खुद पर तरस आया। लेकिन मुझे गुस्सा नहीं आया, आखिर मैं किस हक से गुस्सा कर सकता हूं।
इसके बाद अगले दिन मैंने अपना ब्लॉग बनाया और उसमें कहा कि मेरा C.P.U., Keyboard, Mouse, UPS सब मेरे दोस्त के पास है। मैंने ही दिया है, और मैंने यह भी कहा कि मैं उनसे 3000 का उधार लिया हूं। तो मेरा समान मेरे दोस्त के पास है तो वह मुझे पैसे लौटाने के लिए और समय दे इतना तो बनता है। और शायद मैंने यह भी कहा था कि मुझे घर जाने के लिए बोला। मैं दुखी था और पता नहीं मैंने क्या-क्या बोल दिया।
लेकिन आज जब मैं ना चाहते हुए भी उनके घर से निकला, तो मुझे छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन तक आया। मैं यही सोच रहा था कि मुझे बस भाडे के लिए ₹100 आसपास दे देगा। लेकिन उसने मुझे बहुत सारे पैसे थमा दिया।
तब मुझे लगा, शायद इसने मेरा वीडियो देख लिया होगा। और मेरा दिल नहीं कर रहा था कि मैं लूं। लेकिन मैं मना भी तो कैसे करूं। फिर भी मैंने मना किया लेकिन मेरे मन करने के बावजूद भी वह नहीं माना।
जैसे वह मुझे जवाब दे रहा हो, अबे तू मुझे क्या देगा। मैं ही तुझको और दे देता हूं। दूसरे ही पल मुझे लगा, कहीं यह हमारे दोस्ती खत्म करने के इरादे से तो नहीं दे रहा? फिर अगले ही पल मुझे ख्याल आया कि कहीं मेरा कंप्यूटर के बदले में तो नहीं दे रहा? और फिर बाद में बोले, मैंने तुमको तुम्हारे सामानों का पैसा दे दिया है। अब से हमारे बीच में कुछ नहीं रहेगा।
इस तरह का गलत ख्याल मुझ में आने लगा। मैं वहां पर सिर्फ इसलिए जाता हूं। क्योंकि मेरा दोस्त है, लेकिन मैं उनके मां बाप का दिल नहीं जीत पाया।
जब मैं अपने दोस्त के घर में था, तबमैं सोच रहा था कि मैं कहीं भी। रेलवे स्टेशन में या कहीं भी यहां से जाने के बाद सो जाया करूंगा। और इसके बाद परमेश्वर के राज्य का प्रचार किया करूंगा।
खाने के लिए कुछ भी सागपात खा लिया करूंगा। और बाकी सारा समय परमेश्वर का काम में लगा दूंगा।
अब मैं यह सोच रहा हूं, कि कहीं परमेश्वर ने तो उनके मन में यह नहीं डाला? कि मुझे पैसे दे।
क्योंकि सच कहूं तो मेरी हालत अभी एक भिखारी से भी गई गुजरी है।
अभी तक जो भी हुआ है मेरे साथ, मैं तो सबसे पहले परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उसने मुझे इतना अच्छा दोस्त दिया।
मैंने अपने दोस्त को थैंक्स बोल दिया।
सच में, मेरा परमेश्वर मेरे लिए उपाय करता है।